बच्चो में बढ़ता एग्जाम का स्ट्रेस

तनाव एक सामान्य स्थिति है, जो हम सभी अपने दिनचर्या में महसूस करते हैं, लेकिन जब तनाव ( स्ट्रेस) का प्रमाण बढ़ जाये तो इससे अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। आधुनिक जीवनशैली, काम का दबाव, पर्सनल रिश्तों में असमंजस, और आर्थिक परेशानियां यह सभी कारण हो सकते हैं जो तनाव पैदा कर सकते हैं। तनाव के कारण शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि ऊंचा ब्लड प्रेशर, माइग्रेन, नींद की समस्याएं, और चिंता। आज के समय में तनाव एक नार्मल बात हो गई है। प्रत्येक व्यक्ति तनाव का शिकार हो रहा है, बड़े तो बड़े आजकल बच्चो में भी तनाव का प्रमाण बढ़ रहा है। आइये समझते है बच्चो में तनाव कैसे देखने को मिलता है।

आज क्लिनिक में शशांक ( बदला हुआ नाम ) १५ साल का युवक और उसक पेरेंट्स मुझ से मिलने आये थे। शशांक की माताजी बताती है की शशांक एक शांत एव सरल स्वभाव का युवक है, जो १०वी की परीक्षा देने वाला है। और पढाई में हमेशा फर्स्ट रैंक ही आता है, पुरे साल भर शशांक ने बहोत अच्छे से पढाई की है, रोज सुबह ६ बजे उठना आधा घंटा एक्सरसाइज करना , फिर पढाई करन। पढाई को लेकर शाशक काफी गंभीर रहता है। समय पर पढ़ना स्कूल जाना ट्यूशन जाना होम वर्क करना, अपने दोस्तों को पढाई में मदद करना। क्लास के सभी बच्चो को पढाई में किसी भी तरह की मदद चाहिए तो पहले फ़ोन शशांक को ही करेंगे इससे शशांक स्कूल में भी काफी प्रचलित था । स्कूल के सारे टीचर्स और बच्चे शशांक के स्वभाव से प्रभावित थे।

शशांक के पिताजी बताते है की कुछ दिनों से शशांक के स्वभाव में काफी बदलाव देखने को मिल रहे है , जैसे की किसी से बात न करना, छोटी छोटी बातो पर चिढ़ जाना, पढाई में अब रुचि ना होना । छोटी छोटी बातो पर रोना आना और एक ही बात का कहना की में एग्जाम में फ़ैल हो जाउगा। बार बार यही बातो का रटन करता रहता है । रात को सोता नहीं है , पढाई से पीछे भागता है , पुरे दिन सोता रहता है, या सोशल मीडिया में अपना समय पसार करता, उसका पढाई में मन नहीं लगता है एग्जाम को करीबन २ महीने बाकि है। पुरे साल भर अच्छे से पढाई करने के बावजूद ऐसी बाते कहना कुछ समझ नहीं आ रहा- ऐसा उसके पिताजी ने कहा। शशांक से बात करने पर उसने कहा, काफी दिनों से उसके मन को नकारात्मक विचारो ने घेर रखा है, १०वी बोर्ड एग्जाम काफी मुश्किल होती है , पेपर काफी कठिन निकलता है, दूसरे स्कूल में जाकर एग्जाम देना होता है ,ऐसी बातो से शशांक काफी डर गया , अचानक से वह छोटी छोटी चीज़ो से घबराने लगा डरने लगा, एग्जाम कैसी जाएगी? में कुछ लिख पाउगा या नहीं? ऐसे अकारण विचारो में रहता था , जिसके परिणाम स्वरुप ऐकडेमिक पर्फोमन्स उसका डाउन होता जा रहा है और कॉन्फिडेंस भी कम होता जा रहा है और शशांक और नकारात्मकता महसूस करता चला जा रहा था।

जब वे मुझसे मिलने आये मैंने उनको बताया की शशांक अभी एग्जाम स्ट्रेस से गुजर रहा है। जब बच्चे एग्जाम स्ट्रेस से गुजर रहे होते है तब अक्सर बच्चो में इस तरह के लक्षण देखने को मिलते है। जिस तरह से व्यस्क लोग स्ट्रेस का शिकार होते है वैसे ही बच्चे भी तनाव (स्ट्रेस )का शिकार होते है। जब बच्चे अपनी तकलीफो का सामने करने में असमर्थ रहते है तो वे तकलीफो से दूर भागते है। जहा बच्चो को एक मानसिक शांति का अनुभव होता है , पर मन में कहीं न कहीं इस अवोइडेन्स बिहेवियर के प्रति संघर्ष चल रहा होता है। आजकल स्कूल व् पेरेंट्स बच्चो पर एग्जाम और पढाई का इतना प्रेशर करते है की सभी बच्चे उस परिस्थिति को आसानी से नहीं झेल पाते और वे स्ट्रेस या अन्य मानसिक बीमारियों का भोग बनते है।

इस तरह की तकलीफो में काउंसलिंग या कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी जैसी Psychotherapy से हम बच्चो के डर, चिंता व् तनाव को कम करके उन्हें इस तरह की तकलीफो से बचाया जा सकता है और नई coping strategies सीखा कर ऐसी तकलीफो का सामना किस तरह से करना चाहिए और भविष्य में ऐसी तकलीफ से कैसे निपटना है उसका मार्गदर्शन कर सकते है।

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