कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन: एक मानसिक जाल - 1

कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन : एक मानसिक जाल

विचार विकृति, जिसे कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन भी कहा जाता है, मानसिकता की एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति की सोच वास्तविकता से भटक जाती है। यह विचित्र सोच अक्सर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनती है और व्यक्ति के जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन के प्रकार
1. ऑल-ऑर-नथिंग थिंकिंग (सभी या कुछ नहीं)

इसमें व्यक्ति चीजों को केवल काले या सफेद, अच्छे या बुरे के रूप में ही देखता है, बिना किसी बीच के रंगों को देखे।

उदा: सोनिया ने अपनी पढ़ाई में बहुत मेहनत की, लेकिन परीक्षा में 90% अंक पाने की बजाय उसे 85% अंक मिले। सोनिया सोचती है, "मैंने पूरी तरह से असफल कर दिया। अगर मैंने 90% अंक नहीं पाए, तो इसका मतलब है कि मैं एक असफल छात्रा हूँ।"

वास्तविकता: 85% अंक एक अच्छा परिणाम है और यह दर्शाता है कि सोनिया ने अच्छी तैयारी की थी। यह जरूरी नहीं कि 90% से कम अंक का मतलब असफलता हो।

2. ओवरजनरलाइजेशन (अति सामान्यीकरण)

एक घटना के आधार पर व्यक्ति यह मान लेता है कि सभी घटनाएं इसी प्रकार की होंगी।

उदा: नीना ने एक बार दोस्तों के साथ पार्टी में मजाक किया, लेकिन किसी ने उसके मजाक पर नहीं हंसा। इस पर नीना सोचती है, "मुझे कभी कोई नहीं समझता। मैं हमेशा बेकार मजाक करती हूँ, और कोई मुझसे कभी खुश नहीं होता।"

वास्तविकता: यह संभव है कि उस समय किसी ने मजाक को समझा न हो, या किसी और वजह से प्रतिक्रिया न आई हो। इसका मतलब यह नहीं है कि नीना के सभी मजाक खराब होते हैं या लोग उसे कभी पसंद नहीं करेंगे।

3. कैटस्ट्रोफाइजिंग (आशंका बढ़ाना)

छोटी-मोटी समस्याओं को बड़ी समस्याओं के रूप में देखना और उनके परिणामों को बढ़ा-चढ़ाकर देखना।

उदा: रोहित को ऑफिस में एक महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन देना है। रोहित सोचता है, "अगर मेरी प्रेजेंटेशन ठीक से नहीं हुई, तो मेरे बॉस मुझसे नाराज हो जाएंगे। मुझे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। इसके बाद मेरे करियर का अंत हो जाएगा, और मैं कभी सफल नहीं हो पाऊंगा।"

वास्तविकता: प्रेजेंटेशन के दौरान छोटी-मोटी गलतियाँ होना सामान्य है। यह जरूरी नहीं कि इससे रोहित की नौकरी पर कोई खतरा आए। अगर कोई गलती होती भी है, तो उसे सुधारा जा सकता है, और बॉस का नाराज होना भी जरूरी नहीं है।

4. इमोशनल रीजनिंग (भावनात्मक तर्क)

इसमें व्यक्ति अपनी भावनाओं के आधार पर सोचता है कि यह सच्चाई है।

5. माइंड रीडिंग (दूसरों के विचार पढ़ना)

इसमें व्यक्ति यह सोचता है कि वह मानता है कि दूसरे लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं, बिना किसी प्रमाण के।

उदा: आशा अपने काम के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए अपने बॉस से मिलने वाली है। विचार विकृति: आशा सोचती है, "मेरे बॉस को मेरा काम पसंद नहीं आएगा। वह मुझे काम के लिए सक्षम नहीं मानते। वे सोचेंगे कि मैं बहुत ही खराब काम कर रही हूँ।"

वास्तविकता: आशा के पास कोई ठोस जानकारी नहीं है कि उसके बॉस उसके बारे में क्या सोचते हैं। बॉस की प्रतिक्रिया उसकी मेहनत और काम पर आधारित हो सकती है, और हो सकता है कि वे उसके काम की सराहना करें।

नकारात्मक फिल्टर (Mental Filter)

इसमें व्यक्ति केवल नकारात्मक घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है और सकारात्मक घटनाओं को नजरअंदाज कर देता है।

उदा: दीपा ने अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान सभी को प्रभावित किया, लेकिन एक ही व्यक्ति ने उसकी प्रेजेंटेशन के कुछ हिस्सों में सुधार के सुझाव दिए।

वास्तविकता: दीपा ने बहुत अच्छा काम किया और कई लोगों को प्रभावित किया। एक व्यक्ति द्वारा सुझाव देना नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।

कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन का उपचार

विचार विकृति का उपचार संभव है और इसके लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) एक प्रभावी तकनीक है जो व्यक्ति को अपनी विकृत सोच को पहचानने और उसे बदलने में मदद करती है।

इसके अलावा, ध्यान और योग भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं।

निष्कर्ष

कग्निटिव डिस्टॉर्शन मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति हो सकती है, लेकिन सही तकनीकों और उपचार के माध्यम से इसे संभाला जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और सकारात्मक सोच का विकास व्यक्ति को इस स्थिति से उबरने में मदद कर सकता है।

स्वस्थ मानसिकता के लिए नियमित ध्यान और मानसिक व्यायाम का अभ्यास करना भी महत्वपूर्ण है।

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